बात करने की कला
आजकल यदि हम अपने आस - पास देखें तो पाते हैं कि, कुछ गिने-चुने लोग ही व्यवहार कुशल हैं | यदि ध्यान से देखें तो हर मानव को समाज में ही रहना हैं क्योंकि हम सभी जानते हैं कि "मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है " यह समाज से अलग होकर नहीं रह सकता है |
अत: समाज में रहने के लिए उसका व्यावहारिक होना आवश्यक है | किसी भी व्यक्ति विशेष के व्यावहारिक विकास में 'बातचीत करने की कला' की महान भूमिका होती है | इसी बात से प्रेरित होकर मैंने कुछ बातें आप सभी के बीच रखने की कोशिश की है इस आशा के साथ कि, यह आपके व्यवहार को उत्तम बनाने में उचित भूमिका का निर्वहन करेगी |
||| सर्वसाधारण
के प्रति |||
1. यदि किसी के अंग ठीक नहीं नाक या कान या कोई और अंग ठीक नहीं है , अंधा लंगड़ा या
कुरूप है अथवा किसी में तुतलाने आदि का कोई स्वभाव है तो उसे कभी
चिढ़ाएं नहीं और न ही उसकी नकल करें |
2. कोई स्वयं गिर पड़े या
उसकी कोई वस्तु गिर जाये, किसी से कोई भूल हो जाये, तो
हँसकर उसे दुखी मत करो |
3. यदि कोई दूसरे प्रान्त का तुम्हारे रहन सहन का पालन नहीं करता है
और बोलने के ढंग में भूल करता है, तो उसकी हँसी नहीं उड़ानी चाहिए |
4. कोई रास्ता पूछे तो उसे समझाकर बताओ और संभव हो तो कुछ दूर तक जाकर
मार्ग दिखा आओ |
5. किसी का भार उससे न उठता हो तो उसकी सहायता करनी चाहिए |
6. कोई गिर पड़े तो उसे सहायता देकर उठाना चाहिए | जिसकी जैसी भी
सहायता कर सकते हो, अवश्य करो | किसी की उपेक्षा कभी भी मत करो |
7. अंधों को अंधा कहने के बदले सूरदास कहना चाहिए |
8. किसी भी देश या जाति के झण्डे, राष्ट्रीय गान, धर्म
ग्रन्थ अथवा सामान्य महापुरुषों को अपमान कभी नहीं करना चाहिए | उनके प्रति आदर
प्रकट करो |
9. किसी भी धर्म या समुदाय पर आक्षेप नहीं करना चाहिए |
10. सोये हुए व्यक्ति को जगाना हो तो बहुत धीरे से जगाना
चाहिए |
11. किसी से झगड़ा नहीं करना चाहिए | कोई किसी बात पर हठ करे व उसकी बातें
आपको ठीक न भी लगें, तब भी उसका खण्डन करने का हठ नहीं करना चाहिए |
12. मित्रों,पड़ोसियों, परिचतों को भाई, चाचा आदि उचित संबोधनों से ही
पुकारना चाहिए |
13. दो व्यक्ति झगड़ रहे हों तो उनके झगड़े को बढ़ाने का
प्रयास मत करो |
14. दो व्यक्ति परस्पर बातें कर रहे हों तो वहाँ नहीं जाना चाहिए और
न ही छिपकर उनकी बात सुनने का प्रयास करना चाहिए |
15. दो आदमी आपस में बैठकर या खड़े होकर बात कर रहे हों तो उनके बीच
में से कभी नहीं जाना चाहिए |
16. आवश्यकता न हो तो किसी का नाम, गाँव, परिचय नहीं पूछना चाहिए |
17. कोई कहीं जा रहा हो तो ‘‘कहाँ जा रहे हो?” भी नहीं कहना चाहिए |
18. किसी का पत्र मत नहीं पढना चाहिए और न किसी की कोई
गुप्त बात जानने का प्रयास करना चाहिए |
19. किसी की निन्दा या चुगली नहीं करनी चाहिए |
20. दूसरों का कोई दोष तुम्हें ज्ञात हो भी जाये तो उसे किसी से नहीं
कहना चाहिए |
21. किसी ने आपसे दूसरे की निन्दा की हो तो उसपर ध्यान नहीं देना
चाहिए |
22. बिना जरूरत के किसी की जाति, आमदनी, वेतन आदि कभी नहीं पूछना चाहिए |
23. कोई अपना
परिचित बीमार हो जाय तो उसके पास कई बार जाना चाहिए | वहाँ उतनी ही देर ठहरना
चाहिए जिसमें उसे या उसके आस पास के लोगों को कष्ट न हो | उसके रोग की गंभीरता की
चर्चा वहाँ नहीं करनी चाहिए और न बिना पूछे औषधि बताने लगना चाहिए |
24. अपने यहाँ कोई मृत्यु या दुर्घटना हो जाये तो बहुत चिल्लाकर शोक
नहीं प्रकट करना चाहिए |
25. किसी परिचित या पड़ोसी के यहाँ मृत्यु या दुर्घटना हो जाये तो
वहाँ अवश्य जाना चाहिए और सभी को समझान चाहिए |
26. किसी के घर जाओ तो उसकी वस्तुओं को बिना कारण नहीं छूना चाहिए |
27. यदि कभी कोई आपके पास आकर कुछ अधिक देर भी बैठै तो
ऐसा भाव मत प्रकट करो कि आप उब गये हैं |
28. किसी से मिलो तो उसका कम से कम समय लो |
29. किसी से मिलने पर अनावश्यक बातें नहीं करनी चाहिए |
30.
बड़े बूढों की सदा ही सहायता करनी चाहिए |
31. कोई
आपको पत्र लिखे तो उसका उत्तर आवश्यक दो |
32. कोई कुछ दे तो बायें हाथ से नहीं लेना चाहिए, दाहिने
हाथ से लें और दूसरे को कुछ देना हो तो भी दाहिने हाथ से देना चाहिए |
33. दूसरों की सेवा करनी चाहिए पर अनावश्यक सेवा नहीं | किसी का भी
उपकार जितना हो सके कभी न लो |
34. किसी की वस्तु तुम्हारे देखते, जानते, गिरे या खो जाये तो उसे वापस देनी
चाहिए |
35. तुम्हारी गिरी हुई वस्तु कोई उठाकर दे तो उसे धन्यवाद जरुर देना
चहिये | आपको कोई धन्यवाद दे तो नम्रता प्रकट करें |
36. किसी को आपका पैर या धक्का लग जाये तो उससे क्षमा माँगना चाहिए |
37. कोई आपसे क्षमा माँगे तो विनम्रता पूर्वक उत्तर देना चाहिए,
अकड़ना नहीं चाहिए | 38. किसी को क्षमा करने के लिए :- क्षमा माँगने की कोई बात
नहीं अथवा आपसे कोई भूल नहीं हुई कहकर उसे क्षमा करना चाहिए |
39. अपने रोग, कष्ट, विपत्ति तथा अपने गुण, अपनी
वीरता, सफलता की चर्चा अकारण ही दूसरों से कभी भी नहीं करनी चाहिए |
40. कभी झूठ मत बोलो, शपथ मत खाओ और न प्रतीक्षा कराने का
स्वभाव बनाओ |
41. किसी के लिए मुख से अपशब्द कभी नहीं निकालना चाहिए और न ही क्रोध
करना चाहिए |
42. यदि किसी के यहाँ अतिथि बनो तो उस घर के लोगों को आपके लिये कोई
विशेष प्रबन्ध न करना पड़े ऐसा ध्यान रखो |
43. कभी कहीं भोजनादि करने का अवसर मिले तो उसकी प्रशंसा
करके खाना चाहिए |
44. किसी से कुछ लो तो उसे ठीक से रखो और काम करके तुरंत लौटा दो |
45. आप किसी के घर जाते हैं तो कुछ मिठाई या फल लेकर जाना चाहिए |
46. किसी के घर जाते या आते समय द्वार बंद करना नहीं भूलना चाहिए |
47. किसी की कोई वस्तु कार्य करने के लिए उठाओ तो उसे फिर से कार्य
पश्चात यथास्थान रख देना चाहिए |
48. रास्ते में या सार्वजनिक स्थलों पर कभी नहीं थूकना चाहिए |
49. कभी भी इधर-उधर लघुशंकादि कदापि न करें, लघु शंकादि करने
के नियत स्थानों पर ही करें |
50. कभी भी रस्ते में फलों के छिलके या कागज आदि डालें, फलों के
छिलके, रद्दी कागज आदि भी उनके लिये बनाये स्थलों पर डालें |
51. मार्ग में कांटे, कांच के टुकड़े या कंकड़ पड़े हो और उसपर
आपकी नजर पड़ती है तो उन्हें मार्ग से हटा देना चाहिए |
52. सीधे शान्त चलें | पैर घसीटते सीटी बजाते, गाते, हँसी
मजाक करते चलना असभ्यता होती है |
53. छड़ी या छाता घुमाते हुए भी नहीं चलना चाहिए |
54. रेल या बस में चढ़ते-उतरते समय धक्का मत दो |
55. रेल से उतरने वालों को पहले उतरने दो तब चढ़ो |
56. सार्वजानिक स्थानों की किसी वस्तु को न लो और स्थान को गंदा मत
करो, वहाँ के नियमों का पूरा पालन करो |
57. रेल में या किसी भी सार्वजनिक स्थान पर धुम्रपान न करो |
58. बाजार में खड़े-खड़े या मार्ग में चलते-चलते खाने लगना अच्छा नहीं
होता |
59. जहाँ जाने या रोकने के लिए प्रतिबन्ध हों उधर से नहीं जाना चाहिए
|
60. एक दूसरे के कंधे पर हाथकर रखकर मार्ग में नहीं चलना चाहिए |
61. सदा किनारे से चलो | मार्ग में खड़े होकर बातें मत करो | बात करना
हो तो एक किनारे हो जाओ |
62. रास्ता चलते इधर-उधर मत देखो |
63. सवारी पर हो तो दूसरी सवारी से होड़ मत करो |
64. कहीं जल में कुल्ला मत करो और न थूको |
65. तीर्थ स्थान पर किसी प्रकार की गंदगी मत करो |
66. नदी में या उसके किनारे गंदगी कभी न करो |
67. सभा में या कथा में परस्पर बात चीत मत करो |
68. किसी दूसरे के सामने या सार्वजनिक स्थल पर खांसना, छींकना
या जम्हाई आदि लेना पड़ जाये तो मुख को ढक लो |
69. बार-बार छींक या खाँसी आती हो तो वहाँ से अलग चले जाना चाहिए |
70. यदि तुम पीछे पहुँचे हो तो भीड़ में घुसकर आगे बैठने का प्रयत्न मत
करो |
71. यदि तुम आगे या बीच में बैठे हो तो सभा समाप्त होने तक बैठे रहो
|
72. सभा स्थल में या कथा में नींद आने लगे तो वहाँ झोंके मत लो,धीरे
से उठकर पीछे चले जाओ और खड़े रहो |
73. सभा स्थल में, कथा में बीच में नहीं बोलना चाहिए |
74. सभा स्थल के प्रबंधकों के आदेश एवं
वहाँ के नियमों का पालन करो |
75. चुंगी,टैक्स,किराया आदि तुरंत दे देना चाहिए |
76. कुली, मजदूर, ताँगे वाले से किराये के लिए झगड़ो मत,
पहले तय करो |
77. किसी से कुछ उधार लो तो ठीक समय पर उसे स्वयं दे दो |
78. मकान का किराया आदि भी समय पर देना चाहिए |
79. यदि कोई कहीं खाने की वस्तु भेंट करे तो उसमें से एक दो ही लेना
चाहिए |
80. वस्तुओं को रखने-उठाने में बहुत आवाज न हो ऐसा ध्यान रखना चाहिए
|
81. घर के दरवाजे धीरे से खोलना और बंद करना चाहिए |
82. सब वस्तुएँ ध्यान से साथ उचित स्थान पर ही रखो, जिससे
जरूरत होने पर ढूंढना न पड़े |
83. कोई तुम्हारा समाचार पत्र पढ़ना चाहे तो उसे पहले पढ़ लेने दो |
84. जहाँ कई
व्यक्ति पढ़ने में लगे हों, वहाँ बातें मत करो शान्ति बनाये रखो |
85.
पहले तो किसी से सामान मांगो ही नहीं, यदि बहुत जरूरत हो तो ले लो लेकिन, लिया
सामान उचित समय पर वापस करो |
86. किसी भी कार्य को हाथ में लो तो उसे पूरा करो |
||| बात
करने की कला |||
अपनी बात को ठीक से बोल पाना भी एक कला है | बातचीत में जरूरी
नहीं है कि बहुत ज्यादा बोला जाए | अपनी बात को नम्रता पूर्वक, किन्तु स्पष्ट व
निर्भयता वे बोलने का अभ्यास करें | जहाँ बोलने की आवश्यकता हो वहाँ अनावश्यक
चुप्पी न साधें | स्वयं को हीन न समझें | धीरे-धीरे गम्भीरता पूर्वक, मुस्कराते हुए, स्पष्ट आवाज में, सद्भावना के साथ
बात करें | मौन का अर्थ केवल चुप रहना नहीं वरन उत्तम बातें करना भी है | बातचीत
की कला के कुछ बिन्दु नीचे दिये गये हैं इन्हें व्यवहार में लाने का प्रयास करें |
1. बेझिझक एवं निर्भय होकर अपनी बात को स्पष्ट रूप से बोलें |
2. ध्यान रहे भाषा में मधुरता, शालीनता व आपसी सद्भावना बनी रहे |
3. दूसरों की बात को भी ध्यान से व पूरी तरह से सुनें, सोचें-विचारें और फिर उत्तर दें| 4. धैर्यपूर्वक
किसी को सुनना एक बहुत बड़ा सद्गुण है |
5. बातचीत में अधिक सुनने व कम बोलने के इस सद्गुण का विकास करें |
6. सामने देख कर बात करें | बात करते समय संकोच न रखें, न
ही डरें |
7. बोलते समय सामने वाले की रूचि का भी ध्यान रखें | सोच- समझ कर, संतुलित रूप से अपनी बात रखें |
8. बात करते हुए अपने हावभाव व शब्दों पर विशेष ध्यान देते हुए बात
करें |
9. बातचीत में हार्दिक सद्भाव व आत्मीयता का भाव बना रहे |
10. उपयुक्त अवसर देखकर ही बोलें |
11. कम बोलें,धीरे बोलें |
12. अपनी बात को संक्षिप्त और अर्थपूर्ण शब्दों में बताएँ |
13. सदा वाक्यों और शब्दों का सही उच्चारण करें.
14. बात की जानकारी न होने पर धैयपूर्वक, प्रश्न पूछकर अपना ज्ञान बढ़ाएँ |
15. सामने वाला बात में रस न ले रहा हो तो बात का विषय बदल देना चाहिए |
16. पीठ पीछे किसी की निन्दा कभी भी न करें और न सुने |
17. किसी पर भी व्यंग नहीं करना चाहिए |
18. केवल कथनी द्वारा ही नहीं वरन करनी द्वारा भी अपनी बात को सिद्ध करें
|
19. उचित मार्गदर्शन के लिए स्वयं को उस स्थिति में रखकर सोचें |
इससे सही निष्कर्ष पर पहुँच सकेंगे |
20. किसी की गलत बात को सुनकर उसे तुरंत ही अपमानित न कर, उस
समय मौन रहें | किसी उचित समय पर उसे अलग
से नम्रतापूर्वक समझाएं |
21. दो लोग बात कर रहे हों तो बीच में न बोलें |
22. समूह में बात हो रही हो तो स्वीकृति लेकर अपनी बात संक्षिप्त में
कहें |
23. किसी से बात करते
समय संबोधनों से अपनी बात को प्रारंभ करें |
24. मीटिंग के बीच से आवश्यक कार्य से बाहर जाना हो तो नम्रता पूर्वक
इजाजत लेकर जाएँ |
25. बात करते समय किसी के पास एकदम नजदीक नहीं जाना चाहिए |
26. दो व्यक्ति बात करते हों तो बीच में नहीं बोलना चाहिए |
27. किसी की ओर अंगुली उठाकर बात नहीं करना चाहिए |
28. किसी का नाम पूछना हो तो आपका शुभ नाम क्या है ? इस प्रकार पूछो
|
29. जहाँ कई व्यक्ति हो वहाँ काना फूसी मत करो |
30. किसी सांकेतिक या ऐसी भाषा में भी मत बोलो जो आपके बोलचाल की
सामान्य भाषा नहीं है और जिसे वे लोग नहीं समझते |
31. रोगी के पास तो एकदम काना फूँसी मत करो, चाहे आपकी बात का रोगी से कोई संबंध
हो या न हो |
32. बहुत से शब्दों का सीधा प्रयोग
भद्दा माना जाता है |
उपसंहार :- अगर हम सभी स्वंय और स्वंय के बच्चो
को इन सभी बातो का पालन करवाए तो हमारा जीवन पूरी तरह से शिष्टाचार से भर जाता है
| शिष्टाचार मनुष्य के व्यक्तित्व का दर्पण होता है | शिष्टाचार ही मनुष्य की एक
अलग पहचान करवाता है | शिष्टाचारी मनुष्य समाज में हर जगह सम्मान पाता है, चाहे वह
गुरुजन के समक्ष हो परिवार में हो, समाज में हो, व्यवसाय में हो अथवा अपनी
मित्र-मण्डली में | शिष्ट व्यवहार मनुष्य को ऊँचाइयों तक
ले जाता है | शिष्ट व्यवहार के कारण मनुष्य का कठिन से कठिन कार्य भी आसान हो जाता
है | शिष्टाचारी चाहे कार्यालय में हो अथवा अन्यत्र कहीं, शीघ्र ही लोगों के आकर्षण का केन्द्र
बन जाता हैं | लोग भी उससे बात करने तथा मित्रता करने आदि में रुचि दिखाते हैं |
एक शिष्टाचारी मनुष्य अपने साथ के अनेक लोगों
को अपने शिष्टाचार से शिष्टाचारी बना
देता शिष्टाचार वह ब्र ह्मास्त्र है जो
अँधेरे में भी अचूक वार करता है-
अर्थात् शिष्टाचार अँधेरे में भी आशा की किरण दिखाने वाला मार्ग है |
विशेष
नोट :-
इस
आलेख को लिखने का मूल उद्देश्य नई पीढ़ी का कुछ शिष्टाचार पूर्ण बातों की ओर ध्यान
आकर्षित करना है, ताकि वे इन बातों से कुछ सीख कर अपने आप को समाज का एक शिष्ट
व्यक्ति बना सकें |