शाम -ए -ग़ज़ल
25 फरवरी 2025
को क्राइस्ट विश्वविद्यालय बेंगलूरु (कर्नाटक) में 'शाम-ए-ग़ज़ल' कार्यक्रम आयोजित किया गया, जो संगीत प्रेमियों के लिए एक यादगार शाम साबित हुई। इस कार्यक्रम का
उद्देश्य ग़ज़ल की समृद्ध परंपरा को सम्मानित करना और छात्रों एवं संगीत प्रेमियों
को इस विधा से जोड़ना था।
क्राइस्ट यूनिवर्सिटी बेंगलूरू में हिंदी और उर्दू में रूचि रखने वाले विद्यार्थियों के क्लब (CHUP) ने 25 फरवरी 2025 की संध्या क्राइस्ट विश्वविद्यालय के मुख्य परिसर के मुख्य सभागार में वार्षिक कार्यक्रम “शाम-ए-गजल” का सफल आयोजन किया। जिसके विशिष्ट अथिति के तौर पर वर्तमान शेर-शायरी जगत के स्तंभ तथा माने जाने कवि ‘अज़हर इकबाल’ जी की उपस्थित रही |
इस कार्यक्रम के प्रणेता
क्राइस्ट विश्वविद्यालय के भाषा विभाग में कार्यरत डॉ. सेबास्टियन के. ए., डॉ. के.के.
शर्मा एवं डॉ. रेशमा एम्.एल के मार्गदर्शन में (CHUP) क्लब के पूर्वअध्यक्ष एवं छात्र रहे माननीय 'ज़ैद हैदरी' की देखरेख में वर्तमान क्लब अध्यक्ष श्री शार्थक एवं सुश्री अदिति सिंह के साथ उनकी
पूरी टीम ‘मनसा-वाचा-कर्मणा’ लगभग पंद्रह दिनों से अथक परिश्रम करती रही जिसका
प्रतिफल कार्यक्रम की गतिशीलता तथा उसकी उत्कृष्ता में साफ़ झलक रहा था |
कार्यक्रम के प्रारंभ से ही एक के बाद
एक बाल कवि मंच पर आए कुछ ने गाया, कुछ ने अपनी
शायरी का समा बाँधा तो कुछ ने अपनी कविताओं को जीवंत कर दिया। उर्दू और हिंदी भाषा
जिन्हें समाज में अक्सर एक वर्ग विशेष धार्मिक विभाजन के प्रतीक के रूप में देखता
है, वे भी इस जीवान्त कलाकारों की आवाज़ में सहजता से प्रवाहित
होते चले गए | इस अद्भुद अविस्मरणीय काव्यमय
शाम की गूँज आज भी क्राइस्ट विश्वविद्यालय के गलियारों में बच्चों के मन-मंदिर पर
छाप छोड़ते हुए समय-समय पर उन्हें गुनगुनाने पर मजबूर कर देती है | यही नही पूरे
परिसर में इस कार्यक्रम की चर्चाए-आम हो गई है |
कार्यक्रम
की मुख्य विशेषताएं:
- प्रमुख कलाकार:
कार्यक्रम में प्रसिद्ध ग़ज़ल गायक एवं कवि ‘अज़हर इकबाल’ ने अपनी प्रस्तुति
से सभी को मंत्रमुग्ध किया। उनकी सुरीली आवाज़ और भावपूर्ण गायकी ने श्रोताओं
के दिलों को छू लिया।
- छात्रों की भागीदारी:
विश्वविद्यालय के भाषा विभाग के छात्रों ने अपनी प्रस्तुतियों से कार्यक्रम
में रंग भरा। उनकी प्रस्तुति ने साबित किया कि नई पीढ़ी भी ग़ज़ल की परंपरा
को जीवित रखने के लिए तत्पर है।
- संगीत संयोजन:
संगीत संयोजन में तबला, हारमोनियम और
सितार जैसे वाद्य यंत्रों का उत्कृष्ट उपयोग किया गया, जिसने
ग़ज़ल की महफिल को और भी जीवंत बना दिया।
- श्रोताओं की
प्रतिक्रिया: कार्यक्रम में लगभग बारह सौ के
आसपास उपस्थित दर्शकों ने हर प्रस्तुति का तालियों की गड़गड़ाहट से स्वागत
किया। कई श्रोताओं ने कहा कि यह कार्यक्रम उनकी आत्मा को सुकून देने वाला था
और उन्होंने ग़ज़ल की गहराई को महसूस किया।
- आयोजन स्थल की
साज-सज्जा: कार्यक्रम स्थल को पारंपरिक
अंदाज में सजाया गया था, जिससे एक प्राचीन
ग़ज़ल महफिल का माहौल बना। दीपों की रोशनी और फूलों की सजावट ने वातावरण को
और भी मोहक बना दिया।
निष्कर्ष:
'शाम-ए-ग़ज़ल' कार्यक्रम ने क्राइस्ट विश्वविद्यालय में
संगीत और संस्कृति के प्रति प्रेम को एक नई दिशा दी। इस प्रकार के आयोजन न केवल
छात्रों को सांस्कृतिक धरोहर से जोड़ते हैं, बल्कि उन्हें
अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित करने का मंच भी प्रदान करते हैं। आशा है कि भविष्य में
भी ऐसे कार्यक्रम आयोजित होते रहेंगे, जो हमारी समृद्ध
सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखें।
नई पीढ़ी ने इस हिंदी-उर्दू संगम के साथ गंगा-जमुनई
तहज़ीब का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए सम्पूर्ण समाज को उस समय एक संदेश देने का
प्रयास किया है जब भाषा को राजनीति का मोहरा बनया जा रहा है | भारत की भाषाई विविधता
का जश्न मनाने के बजाय, राजनीतिक नेता
प्रतिस्पर्धात्मक एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में भाषा का गला घोटने में
तनिक गुरेज नहीं करते हैं | भाषा अपने आप में सामाजिक एंव मानवीयता का एक पुल है
जिसे हर व्यक्ति अपनी जीविका को चलाने का माध्यम मानता है फिर वह चाहे गाँव का
निरीह घिस्सूराम हो या फिर शहर का मिस्टर ऐलन।
डॉ. के. के. शर्मा (सहायक आचार्य) क्राइस्ट विश्वविद्यालय, भाषा विभाग
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