समाज सेवी संत कुरिएकोस एलियास चावरा
सारांश :- जब भगवान महान व्यक्ति को इस धरा पर भेजता है तो जन्म के साथ ही उसके माथे पर लिख देता है क्रांतिकारी, और फिर क्रांतिकारी के पथ में विश्राम कहाँ ? वह तो समाज में व्याप्त कुरीतियों और अभावों को समाप्त करने में जी-जान से लग जाता है | कुछ ऐसे ही थे संत कुरिएकोस एलियास चावरा जी | स्वर्गीय कुरिएकोस एलियास चावरा जी महान सीरियाई कैथोलिक संत थे | इनका जन्म भारत देश के केरल राज्य के कैनाकरी में १० फरवरी १८०५ ई को एक नसरानी इसाई परिवार में हुआ | इनके पिताजी का नाम कुरिएकोस चावरा और माता का नाम मरियम था |
मूल शब्द :- संत कुरिएकोस एलियास चावरा जी का जीवनवृत एवं व्यक्तित्व, प्राम्भिक परिवेश, शिक्षा, जीवन संघर्ष, समाज सेवा और उनके कार्य, सम्मान और पुरस्कार |
प्रस्तावना :- प्रस्तुत लधु शोध-प्रबन्ध “समाज सेवी संत कुरिएकोस एलियास चावरा” जी का व्यक्तित्व, एक संक्षिप्त परिचय | के माध्यम से मैंने यह बताने का प्रयास किया है की संत कुरिएकोस एलियास चावरा जी का जीवन स्वयं संघर्ष पूर्ण रहा है, बचपन में एलियास गाँव के ही विद्यालय ‘कलारी’ में कई भाषाओँ और प्राथमिक विज्ञान की शिक्षा प्राप्त की इनका झुकाव बचपन से ही गरीबी में रहने वाले लोगों के प्रति उदार और सहानुभूति से भरा था वे हमेशा उनकी उन्नति के बारे में सोचते रहते थे |
संत चावरा जी का जीवनवृत एवं व्यक्तित्व:- कुरिएकोस एलियास चावरा जी का जन्म फरवरी 10, 1805 को केरल के आलप्पुषा जिला के कैनकरी नामक गाँव में हुआ। इनके पिताजी का नाम कुरिएकोस चावरा और माता का नाम मरियम तोप्पिल था | स्थानीय प्रथा के अनुसार बच्चे को आठवें दिन चेन्नंकरी पेरिश में बपतिस्मा संस्कार दिया गया। इन्होने सन १८१८ ई में मुख्याधिष्ठाता(Rector) पालकल थॉमस मल्पान से प्रभावित हो कर एक पुजारी बनने की इच्छा से पल्लिपुरम सेमिनरी में प्रवेश ले लिया | और धार्मिक पढ़ाई के उपरांत २९ नवम्बर १८२९ ई को इन्हे इसाई पुजारी/पुरोहित (Priest) के रूप में अभिषेक किया गया | चावरा जी एक इसाई समुदाय के होते हुए भी मानव सेवा को अपना धर्म बनाया और मानव के उत्थान के लिए चर्च के पास ही विद्यालय को प्रारम्भ करने पर बल दिया | क्योंकि उनको इस बात का आभास था की सिर्फ और सिर्फ शिक्षा से ही मानव और फिर समाज और अंत में राष्ट्र का भविष्य बदला जा सकता है | आज अनेक चर्चों में उनके मार्गदर्शन में खोले गए विद्यालय अपनी सेवा समाज के हर वर्ग को प्रदान रहे हैं |
शिक्षा :- चावरा जी का वचपन बहुत ही संघर्ष पूर्ण स्थिति में गुजरा था | 5 साल से 10 साल तक के आयु में उन्होंने गाँव के एक शिक्षक से भाषा ज्ञान और प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की। बालक मन से ही समाज के निम्न वर्ग को पिसते देख कर उनके लिए कुछ करने की ललक लिए चावरा जी ने अपना जीवन मानव की सेवा में ही अर्पित करने का संकल्प ले लिया था | बचपन से ही उनके हृदय में एक पुरोहित बनने की तीव्र इच्छा थी जो लोगों को सेवा प्रदान कर सके इसलिए वे संत यूसफ गिर्जाघर के पल्लि-पुरोहित से इस के लिए प्रशिक्षण प्राप्त करने लगे । सन 1818 में 13 साल की आयु में पल्लिप्पुरम में स्थित सेमिनरी में प्रवेश किया जहाँ मल्पान थॉमस पालक्कल अधिष्ठाता थे। और आगे चलकर उन्होंने फ़ादर की उपाधि और पद प्राप्त किया | उसके बाद अपना पूरा जीवन ही लोगों और समाज सेवा में अर्पित कर दिया |
जीवन-संघर्ष तथा समाजसेवी कार्य :- सेमिनरी में मल्पान थॉमस पालक्कल की अनुपस्थिति में कुरिएकोस एलियास चावरा जी अधिष्ठाता का कार्यभार संभालने लगे। आगे चलकर फादर कुरियाकोस, मल्पान थॉमस पालक्कल तथा मल्पान थॉमस पोरूकरा के साथ मिलकर एक धर्मसमाज की स्थापना करने की योजना बनायी और इस पर काम करते हुए सन 1830 में इस धर्मसमाज का प्रथम मठ बनाने हेतु वे मान्नानम गये और वहाँ पर 11 मई 1831 को उसकी नींव डाली और Caramelizes of Mary Immaculate (CMI) नामक धर्मसमाज की स्थापना हुई।
कुरिएकोस एलियास चावरा ने "पल्लीकुडम" आंदोलन की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य केरल के हर पैरिश चर्च से जुड़े स्कूलों में मुफ्त शिक्षा प्रदान करता है। सन 1846 में इन्होने सर्वप्रथम एक संस्कृत विद्यालय की स्थापना की इस विद्यालय की खास बात यह थी कि इसमें किसी भी समुदाय या धर्म के बच्चे अध्ययन कर सकते थे हालांकि प्रारम्भ में इनका काफी विरोध हुआ किंतु चावरा जी ने किसी की परवाह किये बिना अपने कार्य में लगे रहे और समाज को एक नई दिशा और दशा प्रदान करते रहे | संस्कृत पाठशाला की शुरुआत एक शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति थी उस समय तक संस्कृत कुछ लोगों के संरक्षण में ही थी। उन्होंने त्रिचूर के एक ब्राह्मण को संस्कृत पढ़ाने के लिए नियुक्त किया। यहाँ सभी छात्रों को संस्कृत पढ़ाई जाती थी। कुरिएकोस एलियास चावरा जी ने उच्च वर्ग के परिवारों के बच्चों के साथ-साथ समुदाय के पिछड़े वर्गों के बच्चों को भी पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। कुरिएकोस एलियास चावरा जी स्वयं संस्कृत के आजीवन छात्र थे। वे हिंदू धर्मग्रंथों को इतनी अच्छी तरह से जानते थे कि उसने अपने स्वयं के धर्मशास्त्रीय लेखन में भी उसका उपयोग किया है । उनका दृढ़ विश्वास था कि बौद्धिक विकास और महिलाओं की शिक्षा सामाजिक कल्याण की दिशा में पहला कदम है। महिलाओं के लिए एक धार्मिक मण्डली की स्थापना करके चवारा जी महिलाओं की सामाजिक स्थिति का भी उत्थान करना चाहा और मंडली का निर्माण कर सदस्यों को लड़कियों को शिक्षा और प्रशिक्षण प्रदान करने को कहा ताकि भविष्य की माताओं को अपने बच्चों को निर्देश और मार्गदर्शन करने के लिए प्रबुद्ध किया जा सके। उन्होंने व्यावसायिक और तकनीकी प्रशिक्षण के माध्यम से महिलाओं की रोजगार क्षमता में सुधार किया। शारीरिक और मानसिक विकलांग व्यक्तियों के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण की भी व्यवस्था की थी |
आज 21 वीं सदी के पहले दशक में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सरकार ने सरकारी स्कूलों में मध्याह्न भोजन योजना शुरू की है | इसको आज से लगभग डेढ़ सदी पहले, फादर चावरा ने प्रारम्भ कर दिया था उस समय वे विद्यालयों में ही पढ़ने वाले गरीब परिवारों के छात्रों को भोजन प्रदान किया करते थे | उनका मानना था कि, बच्चों के बौद्धिक और शारीरिक विकास के लिए अच्छा भोजन बहुत जरूरी है। यही नहीं उन्होंने कैनाकारी में बेसहारा और गरीबों के लिए पहला घर बनाया, जो आज एक स्मारक के रूप में विद्यमान है | उन्होंने एक लिखित निर्देश दिया कि कैसे इस घर को चलाने के लिए धन इकट्ठा किया जाए लिया| अपने जीवन काल में, उन्होंने कई ऐसे घर बनाए।
1887 में उन्होंने 'नसरानी दीपिका' मलयालम दैनिक शुरू किया था यह पहला मलयाली दैनिक था जो सेंट जोसेफ प्रेस में छपा था। उन्होंने अपने बहुत ही व्यस्त जीवन होने के बावजूद गद्य और कुछ किताबों को लिखने के लिए समय निकल कर उनकी रचना की जिसमें कुछ निम्नवत हैं :- आत्मानुथमम, मरनवेटेट पडवनुल्ला पाना, अनास्ताशायुदे रक्थाकश्याम, नलगामंगल, ध्यान सलपंगल के अलावा नाटक की भी रचना की थी जिसका नाम “नीलदारपन” है, यह 1860 में प्रकाशित हुआ था। 1882 में केरल वर्मा वलियाकोविल थामपुराण द्वारा मलयालम में पहला मलयालम नाटक अभिज्ञान शाकुन्तलम् का अनुवाद किया गया है। इससे पहले के दशक में, फादर चावारा ने 10 इकोटोलॉग या लिटर्जिकल ड्रामा जैसे कई नाटक लिखे थे। जिसका कई दशकों बाद मंचन किया गया था, इसलिए उन्हें मलयालम नाटक का जनक माना जा सकता है।
दोनों मल्पानों के स्वर्गवास के बाद फादर कुरिएकोस एलियास चावरा ने धर्मसमाज का नेतृत्व भार ग्रहण किया और सन 1856 से सन 1871 तक फ़ादर कुरियाकोस धर्मसमाज के परमाधिकारी बने रहे। फ़ादर कुरिएकोस एलियास चावरा जी की अगुवाई में मान्नानम के बाद अलग-अलग जगहों पर 6 और मठों की स्थापना हुई। केरल की सीरो मलबार कलीसिया के नवीनीकरण में सी.एम.आई. धर्मसमाज का बहुत बडा योगदान रहा। उन्होंनें पुरोहितों के प्रशिक्षण तथा पुरोहितों, धर्मसंघियों तथा साधारण विश्वासियों की वार्षिक आध्यात्मिक साधना को बहुत महत्व दिया। स्थानीय भाषा में काथलिक शिक्षा प्रदान करने हेतु एक प्रकाशन केन्द्र की स्थापना की गयी। अनाथों के लिए एक सेवा केन्द्र को भी शुरू किया गया। सी.एम.आई. धर्मसमाज ने शिक्षा के क्षेत्र में बहुत बडे योगदान देते हुए विभिन्न पाठशालाओं की भी स्थापना की। फादर लियोपोल्ड बोकारो के साथ मिल कर फादर कुरियाकोस ने महिलाओं के लिए मदर कार्मल के धर्मसमाज की भी स्थापना की। सन 1861 में जब मार थॉमस रोकोस संत केरल आये और तत्पश्चात जो विच्छिन्न सम्प्रदाय की शुरुआत हुई, तब वरापोली के महाधर्माध्यक्ष ने फादर कुरियाकोस को उपधर्मपाल नियुक्त किया। उस विच्छिन्न सम्प्रदाय से केरल की कलीसिया को बचाने में फादर कुरिएकोस एलियास चावरा जी का सराहनीय योगदान रहा। 3 जनवरी सन 1871 को फादर कुरियाकोस का कोच्ची के कूनम्माव मठ में बीमारी के कारण निधन हो गया ।
कुरिएकोस एलियास चावरा जी के निःस्वार्थ भाव से सभी धर्म और सम्प्रदायों के लिए किये गए कार्यों के नाते सभी उन्हें “भगवान् का दूत” मानने लगे | एक छह वर्षीय लड़के, जोसेफ मैथ्यू पेनापरम्पिल जिसे एक घातक बीमारी थी और उसका इलाज़ चल रहा था उसने कुरिएकोस एलियास चावरा जी को सपने में देखा और वह बीमारी मुक्त हो गया इस घटना को सभी ने एक चमत्कार के रूप में स्वीकार किया था। इसके बाद कुरिएकोस एलियास चावरा जी को सपने में देखने से कई लोगों को चमत्कारिक रूप से बीमारी से ठीक होने का अनुभव हुआ है। जिसमें सन्त अल्फोन्सा ने सन 1936 में बीमारी के दौरान दो बार कुरिएकोस एलियास चावरा के दर्शन पाने तथा उसके फलस्वरूप बिमारी से मुक्ति प्राप्त होने का प्रमाण दिया । जब 8 फरवरी 1985 को पोप जॉन पॉल द्वितीय भारत भ्रमण पर आए और केरल गए थो उन्होंने कोट्टयम में चावरा कुरिएकोस एलियास चावरा को संत घोषित करने का प्रस्ताव दिया था काफी दिनों के उपरांत 23 नवंबर 2014 को संत पिता(पोप) फ्रांसिस ने रोम में कुरिएकोस एलियास चावरा जी को संत घोषित किया।
निष्कर्ष :-
समाज में होने वाले परिवर्तन इतिहास से सीखने और वर्तमान स्थिति को जानने तथा भविष्य के लिए दूरदृष्टि रख कर काम करने का परिणाम होते हैं । कुरिएकोस एलियास चावरा जी इस प्रकार के दूरदर्शी व्यक्तियों में से एक थे जिन्होंने समाज को बदल कर रख दिया और जिनका लगाया हुआ एक पौधा आज अनेक बागों का रूप लेकर निरंतर पूरे विश्व में विभिन्न समाज की सेवा कर रहा है |उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन ही लोगों और समाज के भलाई के लिए अर्पित कर दिया | आज सम्पूर्ण विश्व में सीएमआई नामक संस्था कुरिएकोस एलियास चावरा जी के बताए मार्ग पर चल कर लाखों करोड़ों छात्र-छात्राओं को एक इसाई समुदाय की संस्था होने के बावजूद सभी धर्मों और सम्प्रदायों को एक सामान विद्यादान करने के साथ ही साथ अनेक समाजसेवी कार्य भी कर रही है | कुरिएकोस एलियास चावरा जी के निःस्वार्थ भाव से किए कार्यों के लिए सम्मान स्वरूप भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री आर.वेंकटरामन ने 1987 में भारतीय डाक विभाग द्वारा डाक टिकट जारी कर उनको सम्मानित किया था |
श्री कृष्ण कुमार शर्मा "सुमित"
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