शनिवार, 1 अगस्त 2020

मनुष्य

6. मनुष्य 
मनुष्य भी क्या जीव है,
सपने ही संजोता वो उम्र भर |
बालक,भाई,प्रियतम,पिता वो,
कभी दुश्मनी निभाता क्रूर बन ||
कभी प्रियतमा का प्रीतम,
कभी वैभवशाली जन मानस का |
फिर भी न नींद आती उसे,
रातों को सोचता ही रहता चकोर बन ||
कब,कहाँ,कैसे ? माला-माल होऊं,
यही फिदरत रही तेरी उम्र भर |
खूब पाया,खूब संजोया यहाँ,
अंत समय ठोकरे मिली दर-बदर ||
आज मरघट पर याद आया,
क्या खोया, क्या पाया उम्र भर |
जानता सब कुछ, फिर भी सपने संजोता,
दौड़ता दिनभर न थकता, भागता उम्रभर ||
‘सुमित’ सिर्फ माया का खेल ये दुनिया,
अंत याद आता सब,किया क्या है? उम्रभर ||
                                                                        पं. कृष्ण कुमा शर्मा “सुमित”
7. चीर हरण
छा गया अँधेरा धुँआ उठ रहा है,
हाल ये ही मेरे भारत हो रहा है |
नैतिकता पे भारी अनैतिकता हो रही है,
संतरी से मन्त्री सभी हैं मूक दर्शक |
कहाँ खो गये हो प्यारे मुरारी,
माँ-भारती का चीर-हरण हो रहा है ||
महंगाई का दानव खड़ा द्वार पे,
विकास के नाम पे सब हरण हो रहा है |
पानी सर से गुजरने लगा अब तो,
क्या-क्या कहूँ कुछ न वरण हो रहा है |
द्रोपदी को बचाया था चीर बन करके ,
अब तो तुम्ही हो नैया, तुम्ही खेवैया |
आओ मुरारी बचाओ लाज भारी,
माँ भारती का बेटों से चीर-हरण हो रहा है ||
छा गया चहुओर अँधेरा, धुँआ उठ रहा है,
हाल यही तो, मेरे भारत हो रहा है |
कहाँ खो गये हो प्यारे मुरारी,
माँ-भारती का चीर-हरण हो रहा है ||
                                                                      पं. कृष्ण कुमार शर्मा “सुमित”

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