बुधवार, 5 अगस्त 2020

मन के गीत

1. गुमान
   मैं टीले पर खड़ा, खुद को ऊँचा समझता रहा |
कारवां आया चला भी गया,
खोया गुमानो में अहम् की रंगरलियों में,
थोड़ी सी सफलता में, थोड़ी से चपलता में,
खुद ही खुद को आगे समझता रहा ||
बातें न सुनता किसी की, हो गुमानो में,
औरों के वेरहमी से अरमां कुचलता रहा |
मैं टीले पर खड़ा, खुद को ऊँचा समझता रहा ||
समय की लगी थाप ऐसी यारों,
खुद को ही शहनशाह समझता रहा |
खुद को ही शहनशाह समझता रहा |
समय तो समय है, न छोड़ा किसी को,
आँखे खुली तो, विरानियत से सहमता रहा |
याद कर्मो की आने पे, मौका पाने को मचलता रहा,
संभव न था रंगमंच पर, जिंदगी मरघट किनारे कड़ी थी,
मैं टीले पर खड़ा, खुद को ऊँचा समझता रहा |
           मैं टीले पर खड़ा, खुद को ऊँचा समझता रहा |
                                                                           श्री कृष्ण कुमार शर्मा "सुमित"

2. यादें बचपन की
कोई लौटा दे ओ मेरे बचपन की यादें,
मिट्टी के घरौंदे बनाना ओ कागज की नावें चलाना |
ओ गुल्ली-डंडे का अपना खेल निराला,
ओ छुपान-छुपाई, झाबर,कब्बडी,अखाड़े को तरस जाना ||
पैदल ही दौड़ते हवाई चप्पलों में,
घर से कोसो दूर होड़-होड़ में ही स्कूल पहुंच जाना |
ओ कुइयां का ठण्डा पानी नहाना,
अमराई की घुली जवानी, खलिहानों में मचल जाना ||
ओ महुवे की खुसबू में बगिया महकना,
लू चलना, काका के मड़हे में सोके दुपहरिया बिताना |
खेतों में जाके ताजे खीरे-खरबूजे खाना,
गाँव के नुक्कड़ पे आके रामलीला की फील्ड सजाना ||
गाँव की इकलौती बस का शहर से आना,
बाबा को आता देखते डर के मारे लटकों में छिप जाना |
साल भर गुल्लकों में पैसे संजोना,
दशहरे मेले की डूग्गी बजते उसे फोड़ने को मचल जाना |
गाँव तो वही पर बदल सब खो सा गया,
न आती मिट्टी की खुसबू, न खलिहानों का गीत सुहाना ||
कितना प्यरा निराला था बचपन हमारा,
गाँव छोड़ शहर को आये संपति बना डाली अट्टालिकाना |
कोई लौटा दे ओ मेरे बचपन की यादें,
मिट्टी के घरौंदे बनाना ओ कागज की नावें चलाना ||…..२
                                                                             पं. कृष्ण कुमार शर्मा “सुमित”

3. समय महान 
किसे सुनाऊॅ कौन सुनेगा,
इस मौसम में मेरे मन की बात प्रिये |
सभी मूक हैं, पर दर्द एक सा,
सबके अपने-अपने झंझावात प्रिये ||
२. खुदा की खुदी पर करले भरोसा,
उसकी रहमत का ऐसा आगाज होगा |
दुश्मन जो बन करके हैं आज बैठे,
ख़िदमत में उन्ही का पहला अल्फ़ाज होगा ||
                                                                             पं. कृष्ण कुमार शर्मा “सुमित”

4. अस्तित्व भारत का 
हम तपे-खपे जल भट्ठी में,
ओ गला सकें औकात नहीं |
उगता सूरज रोक सकें वे,
उनके बस की बात नहीं ||
समय चक्र है,घना अँधेरा,
पल है उनका कुछ खास नहीं |
पर कायम रख लेंगें इसको ,
ऐसी उनकी अब औकात नहीं ||
आयेगा झंझर, टूटेगा ये मंजर,
छतरी उठते ही खुला गगन होगा |
खुद को परिचित कर पायेंगें ,
होगी उनमें इतनी बात नहीं |
हम तपे-खपे जल भट्ठी में,
ओ गला सकें औकात नहीं ||
                                                                          पं. कृष्ण कुमा शर्मा “सुमित”
5. कटुक-वचन
दुनिया वालों, तुम मिल दीप जलाओ |
कटुक वचन तुम छोड़ो, समय हमारे पास नहीं |
जीवन बीत रहा मुट्ठी बंद रेत सा,
चादर तानो प्यार की, कुढ़ने को कुछ खास नहीं ||
ये सत्य ! धैर्य परीक्षा लेता जीवन की,
पर कहने को कुछ भी मेरे पास नहीं |
कटुक वचन तुम छोड़ो, समय हमारे पास नहीं ||
दुनिया चपल चंचला बन बैठी है,
अब तो ऐसे में अपनों से भी आस नहीं |
जग की रीत यही है यारों,
रोने वालों के संग कोई पास नहीं |
कटुक वचन तुम छोड़ो, समय हमारे पास नहीं ||
जीवन की सार्थकता निहित इन्हीं में,
सेवा, प्रेम और सत्यता बाकी कुछ भी खाश नहीं |
जीवन दीप झिलमिल करता जग में,
कर्म तुम्हारे साथ रहेंगे सत्य यही,कोई परिहास नहीं ||
कटुक वचन तुम छोड़ो, समय हमारे पास नहीं |
दुनिया वालों,मिल दीप जलाओ समय हमारे पास नहीं ||
समय हमारे पास नहीं………………….
                                                                  पं. कृष्ण कुमार शर्मा “सुमित”

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