मेरी मुन्नार यात्रा
पर्यटन मनुष्य को सीखने और समझने तथा अपने अनुभवों को सकारात्मक रूप से जीवन में बहुत कुछ संजोने का मौका देता है | मैंने सेना में रहते हुए भारत के पूर्व, उत्तर और पश्चिम की अनेक यात्राएँ की थी हालांकि यह यात्राएँ सभी मेरे स्थानांतरण संबंधित थी लेकिन इन सभी जगहों को उनके प्राकृतिक सौंदर्य के साथ-साथ सामाजिक वातावरण एवं वहाँ के रहन-सहन तथा रीति-रिवाज और उनके पहनावे, खानपान आदि को भी बड़ी निकटता से परखा था | परंतु दक्षिण भारत में केरल राज्य के मुन्नार नामक स्थान का भ्रमण करने का मौका मुझे सेना से अवकाश प्राप्त होने के उपरांत क्राइस्ट स्कूल बेंगलुरु में अध्यापन कार्य करने के दौरान सत्र २०१७-१८ में प्राप्त हुआ | विद्यालय प्रत्येक वर्ष अपने अध्यापकों को शैक्षिक-भ्रमण पर ले जाता है | इसी क्रम में उस वर्ष भ्रमण के लिए विद्यालय प्राचार्य फादर अगस्टियन पी. के साथ ६५ अध्यापक-अध्यापिकाओं का समूह बेंगलुरु से मुन्नार(केरल) के लिए गया था | 09 फरवरी 2018 का दिन था विद्यालय में भ्रमण के लिए जाने वाले अध्यापकों को दोपहर 12:15 पर विद्यालय से मुक्त कर दिया गया था क्योंकि दोपहर 2:30 पर विद्यालय परिसर से दो बसों के माध्यम से अध्यापकों को बेंगलुरु सिटी रेलवे स्टेशन पहुँचना था | सभी अध्यापक-अध्यापिकाएँ समय से पूर्व सिटी रेलवे स्टेशन पहुँच गए थे | मैं विद्यालय बस में न जाकर घर से ऑटो लेकर के एन.सी.सी. ऑफिस का कुछ काम करते हुए रेलवे स्टेशन पहुँचा था | ठीक 8:00 बजे शाम को ट्रेन नंबर 6350 बेंगलुरु से अलुवा के लिए रवाना हुई | रास्ते में थॉमस सर और श्री नागेश कुमार जी की देखरेख में संपूर्ण व्यवस्था खाने पीने की थी | समय-समय पर सभी को भोजन पानी और चाय मिलता रहा | ट्रेन दूसरे दिन सुबह 4:15 पर अलुवा स्टेशन पर पहुँची| हम सभी उतर गए हालांकि ट्रेन का सही समय 3:50 था थोड़ा विलंबित थी | स्टेशन से हम सब दो बसों के द्वारा सी.एम.आई.(क्रिश्चियन संस्था) के एक विद्यालय में करीब 6:30 बजे प्रातःकाल पहुँचे | वह विद्यालय बड़े ही रमणीय स्थान पर मानों प्राकृति ने उसे अपने हाथों से सजाया था | वहाँ हम सब के तैयार होने तथा सुबह का नाश्ता करने का इंतजाम था | हम सभी लोग तैयार होकर सुबह का नाश्ता करने के बाद पुन: अपनी-अपनी बसों में आकर बैठ गए हमारी बसें वहाँ से टेढ़े-मेंढ़े रास्तों, जंगलों और चाय के बागानों से होते हुए अनेक सुंदर-सुंदर जलप्रपातों को देखते हुए एक बहुत ही सुंदर रमणीय जलप्रपात(अथुकड़) पर पहुँचे वह बहुत ही मनोहारी था | थोड़ी देर रुकने के बाद वहाँ से हमारी बस मुन्नार के लिए रवाना हुई | दोपहर करीब 12:30 के आसपास हम मुन्नार बसस्टैंड पहुँच गए | वहीँ पास ही ‘मुन्नार डे’ नामक होटल में “विद्यालय यात्रा व्यवस्थापक समिति” ने पहले से ही कमरे बुक करा रखे थे | हम सब होटल पहुँचकर दोपहर का भोजन किए उसके बाद अपने-अपने कमरों में चले गए | थोड़ी देर आराम करने के बाद लगभग 05 बजे शाम को हम सभी स्थानीय बाजार घूमने गए | बाजार पहाड़ियों से घिरा था, बाजार में अनेक आकर्षक वस्तुएँ थी जिनमें स्थानीय चॉकलेट, चाय और हाथों से बने अनेक सामानों से पूरा बाजार सजा था | मुझे सबसे ज्यादा धार्मिक एकता को एक सूत्र में पिरोने वाली बात पसंद आई, वह यह थी कि मुन्नार बाजार की पीछे की ओर थोड़ी दूर पर, थोड़ी ऊँचाई पर एक तरफ बहुत पुरानी चर्च वहीं से थोड़ा आगे दक्षिण की ओर मस्जिद और मस्जिद के बाएँ और लगभग 300 मीटर की दूरी पर भव्य शंकर जी का मंदिर था | मंदिर तक जाने के लिए बाजार के बीच से एक छोटे से पुल को पार करके पहुँचा जा सकता था | मैंने अपने मित्र के साथ चर्च, मंदिर और मस्जिद की रमणीयता को बारी-बारी से देखा तदुपरांत बाजार भ्रमण करके हम लोग वापस होटल आ गए | थोड़ा विश्राम के बाद हम सब तैयार होकर रात्रि भोज पर गए और स्थानीय व्यंजनों का रसास्वादन कर होटल के बहार यूँ ही टहलने निकल गए | हवा ठंडी थी, पहाड़ियों पर बने होटलों के मद्धिम प्रकाश और आकाश में टिमटिमा रहे तारे ऐसे प्रतीत हो रहे थे की मानों आपस में मिल जाने को आतुर हो रहे हों | थोड़ी देर में ठंड बढ़ने लगी तो हम वापस कमरे में आ कर सो गए | दूसरे दिन प्रातः नाश्ते के बाद हम सभी लोग मुन्नार के प्रसिद्ध ‘चायसंग्रहालय’ गए वहां पर हम लोगों को मुन्नार की डॉक्यूमेंट्री देखने का मौका मिला | जिससे मुन्नार के पुराने इतिहास से आज तक के स्वरूप का पता चला, डॉक्यूमेंट्री के दौरान ही मुन्नार में आई प्राकृतिक आपदाओं के बारे में भी जानकारी मिली | चाय के संग्रहालय के बाद हम सभी गुलाब के बगीचे फिर हाथी पार्क तथा उसके बाद प्रसिद्ध बाँध और झील (कुंडाला) देखने गए | यहीं पर दोपहर के भोजन की व्यवस्था थी भोजन के उपरांत कुछ लोग वोटिंग करने चले गए कुछ लोग वहाँ के स्थानीय बाजार में घूमने चले गए | तकरीबन शाम 4:30 बजे के आसपास हम वहाँ से सी.एम.आई. के द्वारा संचालित विद्यालय के लिए रवाना हुए और करीब 1 घंटे के बाद हम सब विद्यालय परिसर में पहुँच गए | वहाँ पर चॉकलेट फैक्ट्री, फल के बागान और दुकानें थी वहाँ पर सभी लोग अपनी अपनी पसंद की चीजें खरीदें और चॉकलेट फैक्ट्री में चॉकलेट बनते हुए देखे | शाम को विद्यालय परिसर में बने चर्च में प्रार्थना सभा का आयोजन था प्रार्थना के उपरांत विद्यालय के खेल के मैदान में एक स्थान पर रात्रि भोज और कैम्प फायर का प्रबंध किया गया था | सभी लोग समय से एकत्र हो गए जलती हुई आग के चारों ओर कुर्सियाँ रखी गई थी सभी लोग अपना अपना स्थान ग्रहण कर चुके थे | हमारे विद्यालय के प्रिंसिपल फादर अगस्टियन पी. को बुलाकर के खेल प्रारंभ करने के लिए कहा सभी लोग ने अनेक खेल खेले गाने आदि गाकर लुफ्त उठाया | उसके बाद रात्रि भोज करके रात्रि करीब 10:00 बजे के आसपास हम सभी मुन्नार डे होटल वापस आ गए | तीसरे दिन सुबह 6:45 पर सभी लोग तैयार होकर बस के द्वारा मुन्नार से कोचीन के लिए रवाना हो, गए रास्ते में लगभग 1 घंटे यात्रा के बाद एक सुंदर स्थान पर नाश्ते का प्रबंध था सभी ने नाश्ता किया और थोड़ा आराम कर के बस में सभी आकर बैठ गए | लगभग एक से डेढ़ घंटे चलने के बाद रास्ते में एक बहुत बड़ी दुकान के पास कॉफी पीने के लिए लगभग 20 से 30 मिनट रुकने के बाद हम सब फिर चल पड़े | दोपहर के पहले ही हम सब कोचीन शहर पहुँच गए वहाँ समुद्र तट के निकट ही एक बहुत सुंदर होटल में दोपहर का भोजन करने की व्यवस्था की गई थी | दोपहर भोज के उपरांत हम सब समुद्र को देखने गए वहाँ से प्रसिद्ध और पुरानी कोच्ची चर्च पहुँचे | वहाँ पर हम सभी को महान दार्शनिक वास्कोडिगामा के डूम को देखने का मौका मिला जो चर्च के अंदर ही था | कोचीन में गर्मी बढ़ चुकी थी वहाँ से देवी मंदिर और दो-तीन जगह का भ्रमण करने के बाद हम सभी लोग समुद्र के तट पर बोटिंग करने के लिए आ गए | लगभग एक से डेढ़ घंटे तक बोट में हम लोगों ने बिताए | बोट में पथ प्रदर्शक हम सब को नौसेना की बोट, मालवाहक बोट, समुद्र में डॉल्फिन प्वाइंट आदि बता-बताकर दिखा रहा था | एक बार तो हमारी बोट काफी अंदर समुद्र में चली गई थी वहाँ से थोड़ी दूर पर है अरब सागर की सीमा प्रारंभ होती थी | ऐसा मार्गदर्शक ने बताया | वहाँ से आते समय भारतीय नौसेना तटरक्षक ने आगे जाने से मना कर दिया | हम लोग वापस आ गए, वापस तट के पास आने पर हम लोग बगल के एक होटल में चाय और कॉफी पीने के लिए गए जिसका जो मन आया किसी ने चाय का रसास्वादन किया तो किसी ने काफी पी | थोड़ी देर रुक करके नाश्ता करने के बाद सूरज डूबने का हम लोग इंतजार करने लगे वह समय बड़ा ही रमणीय था जिस समय सूरज अरेबियन सागर में डूबा था वह आनंद लेने के बाद वहाँ से हम सभी लोग रेलवे स्टेशन आ गए | ट्रेन थोड़ा लेट थी लगभग शाम 9:45 पर ट्रेन आई, सभी लोग अपनी-अपनी पूर्व निर्धारित सीट पर जगह ले ली | रात काफी हो गई थी रात्रि भोज के उपरांत सभी सो गए सुबह 8:30 के आसपास हम सभी वापस बेंगलुरु कैंट रेलवे स्टेशन पहुँच गए | वहाँ से हम सब अपने-अपने घर के लिए रवाना हो गए |
दक्षिण भारत मुन्नार की यह यात्रा, मेरे लिए एक यादगार यात्रा थी | जैसा कि मैंने सुना था कि, मुन्नार को देवस्थली यानी देवताओं का घर कहा जाता है | वाकई अंत में मुझे लगा कि मुन्नार जैसा स्थान भारत में अन्यत्र मिलना मुश्किल है |
श्री कृष्ण कुमार शर्मा "सुमित"
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