बादलों को छूती
बर्फीली चोटियाँ,
उनसे लगी होती हैं
गहरी घाटियाँ |
इनसे हो बहती हैं
टेढ़ी-मेढ़ी नदियाँ,
बहते हुए मानो बीत गयी
सदियाँ |
सुंदर दिखते हैं रूई
से बादल,
हरे-भरे मैदान लगते
हैं मखमल |
बह रही है नदी करते
हुए कल-कल,
झूम उठता है मन हर
घड़ी हर पल |
दूध सा पानी झरनों से
बहता है,
आगे ही बढ़ना है, वह हमसे कहता है |
ऊँचे पर्वत से निकल
नीचे को गिरना है,
नदियों को आखिर में
सागर से मिलना है |
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