शनिवार, 16 नवंबर 2024

फल परिश्रम का (कहानी)

 

फल परिश्रम का

      अमनपुर गाँव में एक किसान का घर था उसके दो बेटे थे दोनों बेटे की शादी हो चुकी थी उन दोनों के बीच में चार नाती और तीन नातिने थी | किसान की पत्नी काफी बूढी हो चली थी | उसने जबरदस्ती करके तीनों नातिनों और बड़े नाती की शादी करा दी | अब घर का खर्च काफी बढ़ गया  था | खेती भी कुछ ठीक से न हो रही थी किसान भी बूढ़ा हो गया था, उसने अपने दोनों बेटों को बुलाकर कहा की बेटा अब गाँव में गुजारा होना आसान नहीं रहा और परिवार भी बढ़ रहा है तुम दोनों शहर क्यों नहीं चले जाते वहां जाकर कुछ नया काम धंधा शुरु करो | बात बेटों की समझ में आ गयी दोनों भाई अगले ही दिन कुछ पैसे और थोड़ा खाने-पीने का सामान लेकर शहर जाने वाली सड़क पर चल दिए काफी दूर चलते-चलते उनको प्यास लगी रास्ते में ही एक कुँए के पास जाकर पानी पिया और थोड़ी देर पास के ही पेड़ के नीचे आराम कर फिर से अपनी राह पकड़ ली | अब वे काफी दूर निकल आये थे वापस जाना संभव न था | आगे जंगल था, वे डरने लगे क्योंकि शाम होने को आ गई थी | जंगल काफी घना एवं बड़ा था | वे सोच ही रहे थे कि उनकी नजर एक बूढ़े आदमी पर पड़ी जो सायद शक्ल से अमीर-व्यापारी लग रहा था क्योंकि उसके साथ दो मोटे-मोटे लोग थे जिनके हाँथों में बांस की लाठी थी, अंदाजा यही लग रहा था कि वे उसके अंग-रक्षक थे | दोनों किसान के लड़कों ने व्यापारी के पास जाकर साथसाथ चलने की मदद मांगी उस व्यक्ति ने पहले तो सोच में पड गया फिर न जाने क्या मन में आया की वह साथ चलने के लिए कह दिया | सभी लोग साथ-साथ बातें करते चलते जा रहे थे धीरे-धीरे जंगल भी घना होता जा रहा था | काफी अन्दर जाने पर एक जगह रस्ते के दूसरे छोर से कुछ लोग आते नजर आये, उनके चेहरे ढंके थे और हांथों में धारदार हथियार थे, देखने से लग रहा था कि वे अच्छे आदमी नही थे | व्यापारी की हालत पतली हो चली थी और उसके अंग-रक्षक भी डरने लग गये थे | लेकिन ऐसा दिखाते हुए सभी लोग आगे बढ़ते जा रहे थे कि जैसे सामने से आने वाले लोगों को देखा ही न हो | समीप आने पर एक हट्टे-कट्टे काले आदमी ने कहा रुको, दिखाओ कि तुम लोगों के पास क्या है ? और अगर अपनी खैरियत चाहते हो तो जो भी तुम्हारे पास है उसे बिना सोचे-समझे निकल कर रख दो इतना कहते हुए उस आदमी ने जमीन पर एक अंगौछा बिछा दिया | इशारा करने लगा,  व्यापारी समझ गया की ये डाकू है और इनसे निपटना आसान नहीं होगा सोचकर व्यापारी काफी डर गया था, उसके अंगरक्षकों ने भी डर के मारे कापते हुए व्यापारी से कहा की हुजूर जो कुछ है इनको दे दो और अपनी जान बचाओ जिन्दा रहे तो आप फिर कमां लेंगे, व्यापारी कहने लगा कि इतनी आसानी से अपना मेहनत से कमाया धन कैसे दे   दे |  तुम लोगों को किस दिन के लिए पाला था इनको सबक सिखाओ | व्यापारी के शब्द सुनकर बड़ी फुर्ती से चारो ओर से डाकुओं ने उनको घेर लिया और व्यापारी के गले पर तलवार लगा दी | व्यापारी को घिरा देखकर उसके अंगरक्षक उसको छोडकर भाग गये | अब डाकुओं के सरदार ने सामने आकार कहा-आखरी बार कह रहा हूँ जो है रख कर चलते बनो बरना सभी मारे जाओगे |” किसान के बेटे व्यापारी की मदद करना चाहते थे लेकिन हथियार बंद डाकुओं से निपटने की तरकीब सोच रहे थे इधर व्यापारी ने भी सारा धन रख देने में ही समझदारी मानी और सारा का सारा धन डाकुओं के हवाले कार दिया, डाकुओं की नजर किसान के बेटों पर पड़ी | एक डाकू गरज कर बोला देखता क्या है तुम दोनों भी अपना सामान रख दो, किसान के बेटों ने सही समय भांपकर अपनी-अपनी पोटली रख दी और एक किनारे खड़े हो गये | चारों डाकू सामान समेटने लगे तभी एक डाकू की नजर किसान के बेटों पर पड़ी उसने देखा की दोनों ने माला पहन रखी है डाकू ने उस माला को भी उतारने को कहा लेकिन किसान के बेटों ने माँ की निसानी बताते हुए मिन्नत की कि, इसको छोड़ दो | दोनों ने इशारे ही इशारे में डाकुओं को सबक सिखाने की ठान ली उसी क्रम में दोनों ने डाकू से माला न लेने की विनती करने लगे लेकिन डाकू मानने को तैयार न थे तभी तेस में आकर एक डाकू ने किसान के बड़े बेटे पर तलवार से वार करना चाहा ठीक उसी समय अवसर का लाभ उठाते हुए किसान के दूसरे बेटे ने बड़ी फुर्ती से अपने अंगोछे को फेंकर उसकी तलवार लपेट ली और उसपर एक जोरदार मुक्के से वार किया डाकू इस प्रकार के वार को झेलने को तैयार न था वह जमीन पर गिर गया | किसान के बड़े बेटे ने अपने आप को सम्हालते हुए डाकुओं पर हमला बोल दिया किसान के छोटे बेटे ने तलवार उठाकर डाकुओं पर टूट पड़ा और दो डाकुओं को मौत के घाट उतार दिया यह देख बाकी बचे डाकू अपने प्राण बचाते हुए भाग निकले | व्यापारी सारी घटना अपनी आँखों से देखता रहा और अंत में किसान के बेटों को अपने साथ अपने घर ले गया तथा उन किसान के बेटों को अपनी पूरी संम्पति देकर एक लम्बी यात्रा पर निकल गया | अब किसान के बेटे ही उसका सारा काम-काज देखने लगे देखते ही देखते व्यापारी का व्यापार कुछ ही दिनों में दुगना फिर तिगुना और फिर कई गुना बढ़ता चला गया व्यापारी यात्रा से वापस आकर दोनों किसान के बेटों को अपने व्यापार में हिस्सेदार बना दिया किसान के बेटों की मेहनत रंग लाई और कुछ ही सालों में व्यापारी पूरे राज्य का नामी सेठ बन गया व्यापारी के कोई संतान न थी सो उसने कुछ धन गरीबों में दान कर दिया और बचा धन किसान के बेटों के नाम कर दिया और अंतिम साँस ले कर दुनिया से बिदा ले ली | किसान के बेटों को उसकी मेहनत का फल मिला | जो लोग दूसरों की मदद बिना किसी लालच के करते है भगवान भी उन्ही की मदद करते है जैसे गरीब किसान के बेटों की मदद कर भगवान ने उनके परिश्रम का फल दिया और उनको एक प्रतिष्ठित व्यापारी बना दिया | यह उनकी अपनी ईमानदारी और मेहनत का फल था |

प्रो. डॉ. के के शर्मा 'सुमित'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

पुरानी पेंशन : बुढ़ापे की लाठी

                                                          पुरानी पेंशन : बुढ़ापे की लाठी पुरानी पेंशन योजना (OPS) को भारत में लंबे समय तक सेव...