शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2025

वेदना मन की

 

वेदना मन की


तेरी यादों की छाँव में, मैं हर पल खो जाती हूँ,

बिन तेरे सूनी रातों में, अश्रु बहाते सो जाती हूँ।

बिछड़ गए जो राहों में, फिर न मिल सके दोबारा,
साँसें हैं इस जीवन में, पर जीवन लगता हारा-हारा।

चाँद भी अब तो मुझसे रूठा, तारे भी चुपचाप हुए,
पवन जो मन को भाती थी, अब वही मलय संताप हुए ।

तेरी बातों की गूँज अब भी, तन-मन में लहराती है,
तेरी छुअन की यादें मुझको, रातों-रात तड़पाती है।

सूनी चौखट, सूनी अँखियाँ, मन है सूना, सूना है संसार,
तेरे बिना ये जीवन मेरा, ज्यों सूखा सावन पालनहार।

तेरी आहट, तेरी छाया, दिल के हर कोने में बसती है,
कैसे तुझे बताऊँ बिन तेरे, मन की दुनिया ही धँसती है।

पथ की हर कली मुरझाई, हर लय में छाई उदासी है,
मेरे जीवन की हर धड़कन, अब तेरी विरह की दासी है।

फिर भी इंतजार में तेरी, प्रेम जोत जलाए बैठी हूँ
साँसों के डुबते सागर में, बस तेरी आस लगाए बैठी हूँ |

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