शनिवार, 16 नवंबर 2024

पुरानी पेंशन : बुढ़ापे की लाठी

                                                         पुरानी पेंशन : बुढ़ापे की लाठी


पुरानी पेंशन योजना (OPS) को भारत में लंबे समय तक सेवानिवृत्त कर्मचारियों की वित्तीय सुरक्षा का आधार माना जाता रहा है। इसे अक्सर "बुढ़ापे की लाठी" कहा जाता है, क्योंकि यह सेवानिवृत्ति के बाद एक सुनिश्चित और स्थिर आय प्रदान करती थी। इसके माध्यम से न केवल कर्मचारी का बल्कि उसके परिवार का भी भविष्य सुरक्षित हो जाता था। पुरानी पेंशन योजना के सकारात्मक पहलुओं पर चर्चा करेंगे, यह कैसे बुजुर्गों के जीवन में स्थिरता और सुरक्षा लाने में सहायक है और इसे क्यों एक आदर्श पेंशन योजना माना जाता है ।

1. वित्तीय सुरक्षा और आत्मनिर्भरता

पुरानी पेंशन योजना का सबसे बड़ा लाभ यह था कि यह सेवानिवृत्त कर्मचारियों को एक निश्चित आय की गारंटी देती थी। एक निश्चित पेंशन राशि मिलने से व्यक्ति को अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में आर्थिक चिंताओं से मुक्ति मिलती थी। पेंशन योजना के अंतर्गत महंगाई भत्ता (डीए) भी शामिल था, जिससे बढ़ती महंगाई के बावजूद पेंशनधारक अपनी जीवनशैली को बनाए रख सकता था। यह बुजुर्गों को आत्मनिर्भर बनाता था और उन्हें अपने परिवार पर आर्थिक बोझ नहीं बनने देता था।

2. जीवनभर की स्थिरता

OPS के तहत सेवानिवृत्ति के बाद कर्मचारियों को अंतिम वेतन का 50% या उससे अधिक पेंशन के रूप में मिलता था। यह राशि जीवनभर मिलती रहती थी, जिससे बुढ़ापे में आर्थिक अनिश्चितता नहीं रहती थी। इसके साथ ही, पेंशन में महंगाई के अनुसार हर साल वृद्धि होती थी, जिससे व्यक्ति अपनी जरूरतों और स्वास्थ्य से जुड़े खर्चों को आसानी से पूरा कर सकता था। यह स्थिरता वृद्धावस्था में शारीरिक और मानसिक शांति प्रदान करती थी।

3. परिवार के लिए सुरक्षा

पुरानी पेंशन योजना न केवल पेंशनधारक को बल्कि उसके परिवार को भी सुरक्षा प्रदान करती थी। यदि किसी कर्मचारी की मृत्यु हो जाती थी, तो उनके आश्रितों को पेंशन मिलती थी, जिससे उनके परिवार का जीवनयापन सुचारू रूप से चलता रहता था। इस प्रकार, यह योजना परिवार के लिए एक महत्वपूर्ण सुरक्षा कवच का काम करती थी, जो कि नई पेंशन योजना (NPS) में कमी है।

4. महंगाई से सुरक्षा

पुरानी पेंशन योजना में महंगाई भत्ते का प्रावधान था, जिससे पेंशनधारकों को बढ़ती महंगाई के साथ अपनी पेंशन में भी वृद्धि का लाभ मिलता था। इससे बुढ़ापे में जीवन की बढ़ती लागतों को संभालना आसान हो जाता था। एक स्थिर पेंशन के साथ महंगाई से जुड़ी वृद्धि कर्मचारी को वित्तीय संकट से बचाए रखती थी। यह सुविधा NPS में नहीं है, जिससे नए कर्मचारियों को भविष्य में आर्थिक असुरक्षा का सामना करना पड़ सकता है।

5. कर्मचारियों के लिए मनोबल और सुरक्षा की भावना

पुरानी पेंशन योजना न केवल एक वित्तीय उपकरण थी, बल्कि यह कर्मचारियों के मनोबल और आत्मसम्मान को भी बनाए रखने में सहायक थी। सरकारी नौकरी में काम करने वाले कर्मचारी अपनी सेवाओं के बदले एक स्थिर और सम्मानजनक पेंशन की उम्मीद रखते थे। इससे उनके कार्य प्रदर्शन में सुधार होता था और उन्हें यह विश्वास रहता था कि सेवा के बाद उनका भविष्य सुरक्षित रहेगा। यह मानसिक सुरक्षा कर्मचारियों के जीवन में एक सकारात्मक ऊर्जा लाती थी।

6. सरकारी कर्मचारियों की वफादारी और स्थायित्व

पुरानी पेंशन योजना के कारण कई सरकारी कर्मचारी अपने करियर को स्थिरता के साथ निभाते थे। यह योजना सरकारी कर्मचारियों को अपने पदों पर बने रहने के लिए प्रोत्साहित करती थी, क्योंकि सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें एक सुरक्षित और सम्मानजनक पेंशन मिलने की गारंटी होती थी। यह प्रणाली कर्मचारियों के बीच वफादारी और स्थायित्व को बढ़ावा देती थी, जिससे सरकारी विभागों की कार्यकुशलता में भी सुधार होता था।

7. वृद्धावस्था में गरिमा के साथ जीवन

पुरानी पेंशन योजना न केवल आर्थिक सुरक्षा देती थी, बल्कि वृद्धावस्था में गरिमा के साथ जीवन जीने की भी सुविधा प्रदान करती थी। पेंशनधारक को यह पता होता था कि उसे हर महीने एक निश्चित आय मिलेगी, जिससे वह अपनी जरूरतों को पूरा कर सकेगा और उसे किसी पर निर्भर नहीं होना पड़ेगा। यह आत्मसम्मान वृद्धावस्था में बहुत महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह बुजुर्गों को आत्मनिर्भर और संतुष्ट महसूस कराता है।

8. समाज में संतुलन और सामाजिक न्याय

पुरानी पेंशन योजना सामाजिक न्याय की भावना को भी मजबूत करती थी। यह सरकारी कर्मचारियों को सेवा के बाद जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने और समान अवसर प्रदान करने का एक माध्यम थी। इससे समाज में एक संतुलन बना रहता था, जहां बुजुर्ग कर्मचारियों को उनके जीवनभर की सेवा का प्रतिफल मिलता था। यह उन्हें गरीबी या वित्तीय संघर्ष से बचाने में सहायक थी, जो समाज के कमजोर वर्ग के लिए एक मजबूत सुरक्षा तंत्र का काम करती थी।

निष्कर्ष

पुरानी पेंशन योजना (OPS) वास्तव में बुजुर्ग कर्मचारियों के लिए "बुढ़ापे की लाठी" थी। इसने न केवल उन्हें वित्तीय स्थिरता प्रदान की, बल्कि उनके आत्मसम्मान, मानसिक शांति, और जीवन की गुणवत्ता में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। OPS की गारंटीकृत पेंशन व्यवस्था और महंगाई से जुड़ी सुरक्षा ने इसे आदर्श पेंशन योजना बना दिया था। यह योजना न केवल कर्मचारियों के लिए बल्कि उनके परिवारों और समाज के लिए भी उत्तम थी ।

OPS के बंद होने और नई पेंशन योजना (NPS) के लागू होने के बाद से यह स्पष्ट हो गया है कि पुरानी पेंशन योजना बुजुर्गों के लिए बेहतर विकल्प थी। इसके पुन: लागू होने की मांग को देखते हुए यह जरूरी है कि सरकार इस विषय पर पुनर्विचार करे और कर्मचारियों के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए उचित कदम उठाए।

प्रो. डॉ. के के शर्मा 'सुमित'

दुनिया भगवान की

 

दुनिया भगवान की

 

भगवान तुम्हारी दुनिया में, अब लोग सताए जाते हैं।

जो मन के साधू होते हैं, नित दूर भगाए जाते हैं।

जो तन स्वादू होते हैं, आसन ही बिठाए जाते हैं।

भगवान तुम्हारी दुनिया में, अब लोग सताए जाते हैं।

जो मन उजले होते हैं, दूर सभा से कराए जाते हैं

धरम-करम का ढोंग जो करते, नित वही पुजाए जाते है। 

श्रीराम तुम्हारी दुनिया में, अब लोग सताए जाते हैं।

कुत्ते-बिल्ली बन घर की शोभा, नित गले लगाए जाते हैं।

माँ-पिता की सेवा करलें, न अब लोग वे पाए जाते हैं।

'सुमित' ऐसा कलयुग आन पड़ा, सच लोग फँसाए जाते हैं।

भगवान तुम्हारी दुनिया में, अब लोग सताए जाते हैं।


प्रो. डॉ. के के शर्मा 'सुमित'

न भारत जैसा देश :

 

न भारत जैसा देश

 पेरिस, घूमे लंदन धूमें, घूमें कइ‌यों देश

पर कहीं न देखा मैने भारत जैसा देश

संस्कार का गुणी-धनी सुन्दर है परिवेश

खनिज संपदरा का धनी-बनी यह

जाति-धर्म-संप्रदाय हैं मिलते जहाँ अनेक

शीश हिमालय सिरमौर है जिसका

हरदम पाँव पखारे है सागर

पूरब में रवि नित आकर जिसे जगाता

दक्षिण में लहराता है जिसके सागर

प्रकृति निखारे नित-नित ऐसा भारत देश

पेरिस, घूमे लंदन धूमें, घूमें कइ‌यों देश

पर कहीं न देखा मैने भारत जैसा देश

कोयल बैठी आम की डाली दादुर शोर मचाते हैं

बाग-बगीचों में नित मोर आकर नृत्य दिखाते हैं

धरती पर हरियाली फैली खेतों में सरसों है फूली

नित भोर भए ही चिड़ि‌या आकर राग सुनाती है

 गंगा-यमुना धार मिले, ऐसा पावन है यह देश 

कहीं न  दिखता जग में, सुंदर ऐसा परिवेश

पेरिस, घूमे लंदन धूमें, घूमें कइ‌यों देश

पर कहीं न देखा मैने भारत जैसा देश


प्रो. डॉ. के के शर्मा 'सुमित'

फल परिश्रम का (कहानी)

 

फल परिश्रम का

      अमनपुर गाँव में एक किसान का घर था उसके दो बेटे थे दोनों बेटे की शादी हो चुकी थी उन दोनों के बीच में चार नाती और तीन नातिने थी | किसान की पत्नी काफी बूढी हो चली थी | उसने जबरदस्ती करके तीनों नातिनों और बड़े नाती की शादी करा दी | अब घर का खर्च काफी बढ़ गया  था | खेती भी कुछ ठीक से न हो रही थी किसान भी बूढ़ा हो गया था, उसने अपने दोनों बेटों को बुलाकर कहा की बेटा अब गाँव में गुजारा होना आसान नहीं रहा और परिवार भी बढ़ रहा है तुम दोनों शहर क्यों नहीं चले जाते वहां जाकर कुछ नया काम धंधा शुरु करो | बात बेटों की समझ में आ गयी दोनों भाई अगले ही दिन कुछ पैसे और थोड़ा खाने-पीने का सामान लेकर शहर जाने वाली सड़क पर चल दिए काफी दूर चलते-चलते उनको प्यास लगी रास्ते में ही एक कुँए के पास जाकर पानी पिया और थोड़ी देर पास के ही पेड़ के नीचे आराम कर फिर से अपनी राह पकड़ ली | अब वे काफी दूर निकल आये थे वापस जाना संभव न था | आगे जंगल था, वे डरने लगे क्योंकि शाम होने को आ गई थी | जंगल काफी घना एवं बड़ा था | वे सोच ही रहे थे कि उनकी नजर एक बूढ़े आदमी पर पड़ी जो सायद शक्ल से अमीर-व्यापारी लग रहा था क्योंकि उसके साथ दो मोटे-मोटे लोग थे जिनके हाँथों में बांस की लाठी थी, अंदाजा यही लग रहा था कि वे उसके अंग-रक्षक थे | दोनों किसान के लड़कों ने व्यापारी के पास जाकर साथसाथ चलने की मदद मांगी उस व्यक्ति ने पहले तो सोच में पड गया फिर न जाने क्या मन में आया की वह साथ चलने के लिए कह दिया | सभी लोग साथ-साथ बातें करते चलते जा रहे थे धीरे-धीरे जंगल भी घना होता जा रहा था | काफी अन्दर जाने पर एक जगह रस्ते के दूसरे छोर से कुछ लोग आते नजर आये, उनके चेहरे ढंके थे और हांथों में धारदार हथियार थे, देखने से लग रहा था कि वे अच्छे आदमी नही थे | व्यापारी की हालत पतली हो चली थी और उसके अंग-रक्षक भी डरने लग गये थे | लेकिन ऐसा दिखाते हुए सभी लोग आगे बढ़ते जा रहे थे कि जैसे सामने से आने वाले लोगों को देखा ही न हो | समीप आने पर एक हट्टे-कट्टे काले आदमी ने कहा रुको, दिखाओ कि तुम लोगों के पास क्या है ? और अगर अपनी खैरियत चाहते हो तो जो भी तुम्हारे पास है उसे बिना सोचे-समझे निकल कर रख दो इतना कहते हुए उस आदमी ने जमीन पर एक अंगौछा बिछा दिया | इशारा करने लगा,  व्यापारी समझ गया की ये डाकू है और इनसे निपटना आसान नहीं होगा सोचकर व्यापारी काफी डर गया था, उसके अंगरक्षकों ने भी डर के मारे कापते हुए व्यापारी से कहा की हुजूर जो कुछ है इनको दे दो और अपनी जान बचाओ जिन्दा रहे तो आप फिर कमां लेंगे, व्यापारी कहने लगा कि इतनी आसानी से अपना मेहनत से कमाया धन कैसे दे   दे |  तुम लोगों को किस दिन के लिए पाला था इनको सबक सिखाओ | व्यापारी के शब्द सुनकर बड़ी फुर्ती से चारो ओर से डाकुओं ने उनको घेर लिया और व्यापारी के गले पर तलवार लगा दी | व्यापारी को घिरा देखकर उसके अंगरक्षक उसको छोडकर भाग गये | अब डाकुओं के सरदार ने सामने आकार कहा-आखरी बार कह रहा हूँ जो है रख कर चलते बनो बरना सभी मारे जाओगे |” किसान के बेटे व्यापारी की मदद करना चाहते थे लेकिन हथियार बंद डाकुओं से निपटने की तरकीब सोच रहे थे इधर व्यापारी ने भी सारा धन रख देने में ही समझदारी मानी और सारा का सारा धन डाकुओं के हवाले कार दिया, डाकुओं की नजर किसान के बेटों पर पड़ी | एक डाकू गरज कर बोला देखता क्या है तुम दोनों भी अपना सामान रख दो, किसान के बेटों ने सही समय भांपकर अपनी-अपनी पोटली रख दी और एक किनारे खड़े हो गये | चारों डाकू सामान समेटने लगे तभी एक डाकू की नजर किसान के बेटों पर पड़ी उसने देखा की दोनों ने माला पहन रखी है डाकू ने उस माला को भी उतारने को कहा लेकिन किसान के बेटों ने माँ की निसानी बताते हुए मिन्नत की कि, इसको छोड़ दो | दोनों ने इशारे ही इशारे में डाकुओं को सबक सिखाने की ठान ली उसी क्रम में दोनों ने डाकू से माला न लेने की विनती करने लगे लेकिन डाकू मानने को तैयार न थे तभी तेस में आकर एक डाकू ने किसान के बड़े बेटे पर तलवार से वार करना चाहा ठीक उसी समय अवसर का लाभ उठाते हुए किसान के दूसरे बेटे ने बड़ी फुर्ती से अपने अंगोछे को फेंकर उसकी तलवार लपेट ली और उसपर एक जोरदार मुक्के से वार किया डाकू इस प्रकार के वार को झेलने को तैयार न था वह जमीन पर गिर गया | किसान के बड़े बेटे ने अपने आप को सम्हालते हुए डाकुओं पर हमला बोल दिया किसान के छोटे बेटे ने तलवार उठाकर डाकुओं पर टूट पड़ा और दो डाकुओं को मौत के घाट उतार दिया यह देख बाकी बचे डाकू अपने प्राण बचाते हुए भाग निकले | व्यापारी सारी घटना अपनी आँखों से देखता रहा और अंत में किसान के बेटों को अपने साथ अपने घर ले गया तथा उन किसान के बेटों को अपनी पूरी संम्पति देकर एक लम्बी यात्रा पर निकल गया | अब किसान के बेटे ही उसका सारा काम-काज देखने लगे देखते ही देखते व्यापारी का व्यापार कुछ ही दिनों में दुगना फिर तिगुना और फिर कई गुना बढ़ता चला गया व्यापारी यात्रा से वापस आकर दोनों किसान के बेटों को अपने व्यापार में हिस्सेदार बना दिया किसान के बेटों की मेहनत रंग लाई और कुछ ही सालों में व्यापारी पूरे राज्य का नामी सेठ बन गया व्यापारी के कोई संतान न थी सो उसने कुछ धन गरीबों में दान कर दिया और बचा धन किसान के बेटों के नाम कर दिया और अंतिम साँस ले कर दुनिया से बिदा ले ली | किसान के बेटों को उसकी मेहनत का फल मिला | जो लोग दूसरों की मदद बिना किसी लालच के करते है भगवान भी उन्ही की मदद करते है जैसे गरीब किसान के बेटों की मदद कर भगवान ने उनके परिश्रम का फल दिया और उनको एक प्रतिष्ठित व्यापारी बना दिया | यह उनकी अपनी ईमानदारी और मेहनत का फल था |

प्रो. डॉ. के के शर्मा 'सुमित'

पुरानी पेंशन : बुढ़ापे की लाठी

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