श्री कृष्ण कुमार शर्मा "सुमित"
श्री कृष्ण कुमार शर्मा "सुमित"
प्रिये
आओ बैठो पास हमारे,
नूतन बनी खुमार प्रिये |
कुछ तुम बोलो, कुछ बिन बोले,
समझूँ सारी बात प्रिये ||
आओ बैठो पास हमारे ,
नूतन बनी खुमार प्रिये |
जीवन का अनमोल रतन तुम,
अर्पित तुमको जीवन-प्राण प्रिये
||
तुम जीवन के पारस पत्थर
मैं लोहे की खान प्रिये |
जीवन सूखी डाली का सा,
तुम्ही बसंती बहार प्रिये
||
आओ बैठो पास हमारे ,
नूतन बनी खुमार प्रिये |
श्री कृष्ण कुमार शर्मा "सुमित"
कामिनी
चंचल चितवन मधुर अधर,
मेघमय केस कटिक नयन |
चमकता-दमकता चाँद सा,
किसका ये सुघरे चेहरे नूर
||
अधखिला कमल सा यूँ,
स्वर्णिम कोमल सा अंग |
सुचिता हो तुम किसकी ?
प्यारी कौन आत्मज तुम्हारा
||
बावरा हुआ मन देख तुझको,
मैं हारा कुछ अब न बाकी
हमारा |
चपल चंचला हे कामिनी,
बता भी दो अब परिचय
तुम्हारा ||
श्री कृष्ण कुमार शर्मा "सुमित"
माँ का दिल
माँ का दिल जहान में निराला
है यारों,
खुद पे सारे जुल्मों सितम झेल
जाती |
दिल के टुकड़े पर आफत, बन रणचंडी,
उल्फत को अपनी जां पर खेल
जाती ||
सारे जहाँ में उसका लाल है अनोखा,
कितना प्यारा, गिन-गिन के
बताती |
लाख गलती हो नजरे आलम में लाल
की,
सीधा-सादा बेगुनाह ही ओ बताती
||
दिन रात मिन्नतें करती ईश
से,
उपवास में ही दिन वो बिताती
|
माँ की नजर बेटे उदर पर ही
रहती,
मातृ-प्रेम तगड़े बेटे को भी
दुबला बताती ||
श्री कृष्ण कुमार शर्मा "सुमित"
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