माँ का दिल
माँ का दिल जहान में निराला
है यारों,
खुद पे सारे जुल्मों सितम झेल
जाती |
दिल के टुकड़े पर आफत, बन रणचंडी,
उल्फत को अपनी जां पर खेल
जाती ||
सारे जहाँ में उसका लाल है अनोखा,
कितना प्यारा, गिन-गिन के
बताती |
लाख गलती हो नजरे आलम में लाल
की,
सीधा-सादा बेगुनाह ही ओ बताती
||
दिन रात मिन्नतें करती ईश
से,
उपवास में ही दिन वो बिताती
|
माँ की नजर बेटे उदर पर ही
रहती,
मातृ-प्रेम तगड़े बेटे को भी
दुबला बताती ||
श्री कृष्ण कुमार शर्मा "सुमित"
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