कामिनी
चंचल चितवन मधुर अधर,
मेघमय केस कटिक नयन |
चमकता-दमकता चाँद सा,
किसका ये सुघरे चेहरे नूर
||
अधखिला कमल सा यूँ,
स्वर्णिम कोमल सा अंग |
सुचिता हो तुम किसकी ?
प्यारी कौन आत्मज तुम्हारा
||
बावरा हुआ मन देख तुझको,
मैं हारा कुछ अब न बाकी
हमारा |
चपल चंचला हे कामिनी,
बता भी दो अब परिचय
तुम्हारा ||
श्री कृष्ण कुमार शर्मा "सुमित"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें